Delhi High Court Judgement 2025: 9 साल पुराने किरायेदारों को 3 महीने में खाली करना होगा मकान

Published On: August 8, 2025
Delhi High Court Judgement

दिल्ली में मकान मालिक और किराएदारों के बीच लंबे समय से विवाद चला आ रहा है। दिल्ली जैसे बड़े शहरों में किराए के मकानों की मांग बहुत अधिक है, ऐसे में मालिक और किराएदारों के अधिकार और नियम अक्सर अलग-अलग मामलों में चर्चा में रहते हैं। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है, जिससे मकान मालिकों को राहत और किराएदारों को झटका लगा है।

यह फैसला दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत आया है, जिसमें कोर्ट ने कई जरूरी बिंदुओं को स्पष्ट किया। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पुराने कानूनों के कारण कई किराएदार वर्षों से बहुत कम किराया देकर मकान में रह रहे हैं, जबकि मकान मालिक आर्थिक रूप से परेशान हो रहे हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मकान मालिक के आर्थिक हालात या किराएदार की गरीबी, कब्जे या ईविक्शन के मामले में मुख्य बिंदु नहीं माने जाएंगे।

इस फैसले से अब किराएदारों को अपने अधिकारों के साथ-साथ मालिक की भावनाओं और जरूरतों का भी ध्यान रखना पड़ेगा। नीचे जानिए इस फैसले का विस्तृत विवरण, कानूनी पक्ष, मुख्य बिंदु और इसका आम जनता पर असर।

Delhi High court judgement

दिल्ली हाईकोर्ट में एक मामला सामने आया था, जिसमें मकान मालिकों ने अपने मकान के व्यक्तिगत उपयोग के लिए किराएदारों को हटाने की मांग की थी। मकान मालिक विदेश में रहते थे, लेकिन दिल्ली में अपना रेस्टोरेंट शुरू करना चाहते थे और इसी मकसद से प्रॉपर्टी खाली करने को कहा गया था। किराएदारों ने तर्क दिया कि मालिक अमीर हैं, उनका यहां रहना या कारोबार करना जरूरी नहीं; जबकि किराएदार मामूली किराए पर वर्षों से मकान में रह रहे हैं।

कोर्ट ने साफ किया कि किराए की दर बहुत कम होने और वर्षों से मकान पर कब्जा रखने का यह मतलब नहीं कि किराएदार को हमेशा के लिए मकान में रहने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि “मकान मालिक की आवश्यकता, उसका आर्थिक स्तर या किराएदार की आर्थिक स्थिति—यह सब मुख्‍य मुद्दा नहीं हैं, बल्कि मकान मालिक के प्रॉपर्टी के अधिकार ज्यादा मजबूत हैं”

महत्वपूर्ण कानूनी पॉइंट्स

  • दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट 1958 के सेक्शन 14(1)(e) के तहत, मकान मालिक यदि अपनी जरूरत के लिए मकान खाली करवाना चाहता है, तो कोर्ट इस मांग को गलत नहीं मान सकती।
  • मालिक की आवश्यकता को लेकर कोर्ट ने कहा – वे चाहें तो छोटे से रेस्टोरेंट के लिए, स्टोर रूम के लिए या किसी भी अपने उद्देश्य से मकान मांग सकते हैं।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि संपत्ति का वास्तविक मालिक ही तय करेगा कि उसका मकान कैसे इस्तेमाल किया जाए—किराएदार को इसमें दखल देने का अधिकार नहीं है।
  • कोर्ट ने यह भी नोट किया कि कई करोड़पति किराएदार दशकों तक बेहद कम किराए पर मालिकाना संपत्ति पर कब्जा रखते हैं, जबकि असली मालिक तंगी में रहते हैं। यह कानून का दुरुपयोग है, जिसे रोका जाना चाहिए.

फैसले का असर – मालिक और किराएदार पर प्रभाव

इस निर्णय के बाद मकान मालिकों की स्थिति और मजबूत हो गई है। अब यदि मालिक खुद के उपयोग के लिए मकान खाली करवाना चाहते हैं, तो कोर्ट उनकी बात को ज्यादा प्राथमिकता देगी, भले ही वह बड़े व्यापारी या आर्थिक रूप से संपन्न क्यों न हों।

दूसरी ओर, किराएदार अगर वर्षों से कम किराया दे रहे हैं या उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है, तो भी कानूनी रूप से अब उन्हें उतनी सुरक्षा नहीं मिलेगी, जितनी अभी तक थी। अगर ‘बोनाफाइड आवश्यकता’ यानी मकान मालिक की वास्तविक जरूरत साबित हो जाती है, तो उन्हें मकान खाली करना पड़ेगा

अहम बिंदुकानूनी स्थिति/फैसला
मकान मालिक का अधिकारप्रॉपर्टी जरूरी उपयोग के लिए खाली करवा सकते हैं
किराएदार की स्थितिआर्थिक या भावनात्मक वजहों से अब कोई अतिरिक्त सुरक्षा नहीं
किरायासालों से कम किराया देकर रहने का अब लाभ नहीं
मालिक की जरूरतमालिक स्वयं तय करेगा कि मकान का किस उद्देश्य से इस्तेमाल हो

कानूनी प्रक्रिया और लागू नियम

मकान मालिक दिल्ली रेंट कंट्रोल कोर्ट में जाकर ‘बोनाफाइड आवश्यकता’ का हवाला देते हुए केस दायर कर सकते हैं। कोर्ट दस्तावेजी सत्यापन के बाद फैसला देती है। अगर पुराना लीज एग्रीमेंट या किराएदारी की अवधि पूरी हो गई हो, तो मालिक को मकान कब्जे में लेने का कानूनी अधिकार मिल जाता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ईविक्शन की पूरी प्रक्रिया में किराएदार का पक्ष जरूर सुना जाएगा, लेकिन अनावश्यक तौर पर मामला लटकाया नहीं जाएगा।

क्या बदला, समझें संक्षेप में

  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ‘किराएदार’ बनाम ‘मकान मालिक’ मामले में मालिक के अधिकार ज्यादा मजबूत हैं।
  • आर्थिक/व्यक्तिगत स्थिति अब ईविक्शन की राह में प्रमुख रुकावट नहीं मानी जाएगी।
  • दशकों तक नाममात्र के किराये पर रहने की प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी।
  • मकान मालिक अपनी संपत्ति का प्रयोग अपनी वास्तविक जरूरत के लिए कर सकेंगे।

संक्षिप्त निष्कर्ष

दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले ने मालिकों और किराएदारों के बीच का संतुलन बदल दिया है। अब मालिकों को अपनी संपत्ति पाने में कम कानूनी दिक्कतें होंगी, वहीं किराएदारों को नया विकल्प और सुरक्षित राह निकालने की जरूरत पड़ेगी। यह निर्णय मालिकों के हित में बड़ा कदम है और किराए के कानून की व्याख्या में नया मानदंड बना है।

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